शंखचूड़ वध (Krishna)

 

शंखचूड़ वध


(Shree Krishna)श्रीकृष्णजी ने विद्याधर को मारा और शंखचूड़ को मारा सो प्रसंग कहता हूँ, तुम जी लगाय सुनो। एक दिन नन्द ने  सब ग्वालबालों को बुलाय के कहा हे भाइयो | जब कृष्ण का जन्म हुआ था तब  मैंने कुलदेवी अम्बिका की मानता की थी कि जिस दिन कृष्ण बारह वर्ष का हुआ  उस दिन नगर  मे गाजे बाजे से पूजा करूँगा चलो  अब चलकर पूजा करनी  चाहिये इतना वचन सुनते ही ग्बाल वाल झटपट अपने  घरों से पूजा की सामग्री हले  आये।

 

तब नन्दराय कूट॒म्ब समेत उनके साथ हो लिये और कुल देवी अम्बिका के स्थान पर पहुँचे। वहाँ जाय सरस्वती नदी में नहाये, नहाय धोय  नन्दजी ने पुरोहित बुलाया, सबको साथ ले देवी मन्दिर में जाय शास्त्ररीति  पूजा की, परिक्रमा दे हाथ जोड़ विनय कर कहा कि, माँ ! आपकी कृपा से  बारह वर्ष का हुआ। ऐसा कह दण्डवत्कर मन्दिर के बाहर आय सहस्रों गण जिमाये, इसमें अबेर जो हुई तो सब ब्रजवासियों समेत नन्दजी तीर्थ व्रत वहाँ ही रात में सोये थे। अकस्मात्एक अजगर ने आय नन्दराय का पाँव  पकड़ा और निगलने लगा। तब तो देखते ही भय खा घबरा करके पुकारने लगे है

 

Krishna सुधि लो नही तो यह मुझे निगले जाता है, उसका शब्द सुनते ही मन ब्रजवासी स्त्री-पुरुष नीद से चौंक नन्‍्दजी के निकट जाय उजाला कर देखें तो एक अजगर उनका पाँव पकड़े पड़ा है। इतने में श्रीकृष्ण (Shree Krishna) भी वहाँ पहुँचे। सबके देखते-ही. देखते ज्योंही उसकी पीठ में चरण लगाया त्योंही वह अपनी देह छोड़ सुन्दर पु हो प्रणाम कर सन्मुख हाथ जोड़े खड़ा हुआ। तब कृष्ण (Krishna) ने उससे पूछातू  किस पाप से अजगर हुआ था सो कह। वह बोला हे अन्तर्यामी तुम सब जानते हो, मेरी उत्पत्ति, मैं सुदर्शन नामक विद्याधर हूँ, सुरपुर में रह था और अपने रूप गुण के आगे गर्व में किसी को कुछ न गिनता था। एक दि; विमान में बैठ घूमने को निकला तो जहाँ अंगिरा ऋषि तप करते थे उनके ऊए ही सौ बार आया-गया, जैसे ही उन्होंने विमान की परछाहीं देख ऊपर देखा बे क्रोध कर मुझे शाप दिया कि अभिमानी, तू अजगर हो। इतना वचन उनके मुद्दे से निकला ही था कि मैं अजगर हो नीचे गिरा। उस समय क्रषि ने कहा, ते मुक्ति कृष्णचन्र के हाथ से होगी इसलिये मैंने नन्दरायजी के चरण आन पढ़े) कि आप मुझे आकर मुक्त करेंगे। हे कृपानाथ ! आपने आय कृपाकर मुक्ति दी। ऐप कह विद्याधर तो परिक्रमा दे हरि से आज्ञा ले दण्डवत्‌ कर विदा हो विमान प्‌ चढ़ सुरलोक को गया और यह चरित्र देख सब ब्रजवासियों को अचरज हुआ निदान भोर होते ही देवी के दर्शन कर सब मिलकर वृन्दावन आये।

इतनी कथा सुनाय श्रीशुकदेवजी बोले हे पृथ्वीनाथ ! एक दिन हलधर औ! गोविन्द गोपियों समेत चाँदनी रात में आनन्द से वन में आय रहे थे कि इसी बीच  कुबेर का सेवक शंखचूड़ नामक यक्ष, जिसके शीश में मणि था और अति बलवा था सो आ निकला। उसने देखासब गोपी यूथ कुतृहल कर रहे हैं। एक ओ कृष्ण-बलदेव मग्न हो मत्तवत् गाय रहे हैं। उसके जी में जी कुछ आई तो एग ब्रजयुवतियों को घेर आगे कर ले चला। उस समय सब गोपी भय खाय पुकाए ब्रजनाथ ! रक्षा करो कृष्ण-बलराम। इतना वचन गोपियों के मुख से निकलते # सुनकर दोनों भाई रूख उखाड़ हाथों में ले यों दौड़े आये कि मानो सिंह मदमी गज पर उठ धाये और वहाँ जाय गोपियों से कहा कि, तुम किसी भाँति मत ओ, हम आ पहुँचे हैं। इनको काल समान देखते हो,

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