Bakasur vadh
Bakasur vadh
जब Shree Krishan 5-बर्ष हुए तो माँ से कहने लगे कि माँ मै गऊ चराने जाऊँगा' तू बलदाऊ से कह दे कि मुझे वन मे ये अकेला न छोडे, माँ कहने लगी…
कन्हैया गाय बछड़े चराने वाले बहुत ग्वाला है'तो कन्हैया हट करने लगे तभी कान्हा बोले माँ मैं वन मेँ खेलने जाऊँगा तो कन्हैया के जिद करने के बाद माँ बलदाऊ और सखाओ से कहती बलराम कन्हैया का ध्यान रखना और बन मैं अकेला न होजाए , और कर कहा कि बछड़े चराने दूर मत जइयो और शाम होते ही दोनों साथ साथ जंगल से गाय लेकर घर आइयो,
तुम इसके रख वाले हो, ऐसा कह के माँ ने दोनो भाइयों को साथ मई गाय चराने जंगल मे भेज दिया। वे जाकर गोकुल मै यमुना तट पर गे ओर बछड़े चराने लगे, और ग्बाल बाल के साथ यमुना के किनारे खेलने लगे, कि इतने मेँ कंस का पठाया बकासुर आया वहां आ पहुंचा ।
उसे देखते ही सब गाय बछड़े डरकर उधऱ भागने लगे तब श्रीकृष्णजी ने बलदेब जी को नैन से जताया कि भाई यह कोई राक्षस आया है । ज्योंही आगे चलते -चलते वह घाट के निकट आ पहुँचा त्यौही श्रीकृष्णने पिछले पाँव पकढ़ फिराय ऐसा पटका कि उसका जी घट से निकल सटका ।
बकासुर को मरने सुनके कंस अघासुरको भेजा वह वृन्दावन मेँ यमुना के तट पर घाट के बृस्क जा बैठा । उसे देख भय के मारे ग्वाल-बाल कृष्ण "से कहने लगे कि भैया ! यह तो कोई राक्षस बगुला बनकर आया है, इसके हाथ से कैसे बचेंगे। ये इधर कृष्ण से कहते ही थे और उधर वह जी में यह विचार करने लगा था कि आज इसे बिन मारे नही जाऊँगा ।
इतने मेँ जो कृष्ण निकट गये तो उसने उन्हें चोंच मेँ उठाय मुँह मूँद लिया । ग्बाल-बाल व्याकुल हो चारों और देखकर पुकार ने लगे इतने मै श्री krishan ने अपना बिसाल रूप धारण किया और वो इनको अंदर ज्यादा देर तक नहीं रख सका
तो श्री krishan को चोंच से बाहर निकाल दिया,और तभी Shree Krishan ने चोंच को पकड कर चीर दिया और मर गया और श्री krishan ग्बाल बालो के साथ घर आ पहुंचे
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