Shree Krishna Gopi Raas Leela in hindi
Shree krishna & Gopi Raas leela
एक दिन कृष्ण कार्तिक पूनम की रात्रि को घर से निकल बाहर आय देखें तो निर्मल आकाश मेँ तारे छिटक रहे हैं, चाँदनी दशों दिशाओ में फैल रही है, शीतल सुगंधि सहित मदे गति से पवन चल रही है , और एक सघन वन की छवि अधिक शोभा दे रही है । उनके मनमे आया कि हमने गोपियों को यह वचन दिया था कि शरदत्रतु मेँ तुम्हारे साथ रास करेंगे सो पूरा करना चाहिये । यह विचार कर मन मे आया कृष्ण ने बाँसुरी बजाईं, वंशी की धुन सुन सब ब्रज-गोपी श्रृंगार कर उठ आई । एक गोपी जो अपने पति के पास से उठ चली तो उसके पति ने रोका और जाने न दिया, तब तो वह हरि का ध्यान कर देह छोड़ सबसे आगे जा मिलो । उसके चित्त की प्रीति देख Krishna ने तुरन्त ही उसे मुक्ति दी ।
उस काल सब गोपियाँ अपने-अपने झुण्ड लिये कृष्ण कै रूप -सागर मेँ धाय कर यों जाय मिली जैसै पानी मेँ पानी जाय मिलै । उस समय के बनाव की शोभा कुछ वर्णी नहीं जाती । सब श्रृंगार कर, नटवर वेष धरे, सुन्दर लगते थे कि ब्रज की गोपियाँ
हरि छवि देखते ही छकि रहीं, तब मोहन उनका कुशल क्षेम पूछ रूखे हो बोलें कहो, रात समय बाट उलटे-पलटे, वस्त्र आभूषण पहिने अति घबराई कुटुम्ब की माया तज इस महावन में कैसे आईं ? ऐसा साहस करना नारियों को उचित नहीं । कृष्ण (Krishna) ने गोपियों को कहा है कि कायर, कपटी, कोढी, काना, लूला-लंगड़ा, कैसा भी पति हो पर उसकी सेवा करना योग्य है, इसी में कल्याण है । कुलवन्ती पतिव्रता का धर्मं है कि पति को क्षणभर न छोडे, पर फिर बोले कि सुनो, तुमने आय सघन वन मेँ निर्मल चाँदनी और यमुना तीर की शोभा देखी, अब घर जा मन लगाय पति की सेवा करो । इसमें तुम्हारा सबका भला है । इतना कृष्ण (Krishna) कै मुख से सुनते ही सब गोपियाँ एक बार तो अचेत हो अपार सोच-सागर मेँ पडी, पीछे" से एक गोपी (Gopi)कहने लगी कृष्ण तुम बड़े ठग हो |पहलें वंशी बजाय हमारा ज्ञान ध्यान, तन-मन हर लिया, अब निर्दयी हो कपट बचनं कह प्राण लेना चाहते हो ।
और जो मनुस्य तुम्हारे चरणों मेँ रहते हैं सो धन, बडाई आदि नहीं चाहते, उनके तो तुम्ही हो जन्म दाता तुम्हीं हो प्राण दाता कन्हैया (krishna) तुम्हें देखने के बाद अब और किसी रिश्ते नाते की जरुरत नहीं है | भगबान गोपी को देखते है और मुसकरा ते है | और गोपी को निकट बुला के कहा जो तुम और राजी हो तो खेलो रास हमारे संग यह बचन सुन गोपियाँ खुश हुई और कृष्ण (Krishna) को चारो ओर से घेर लिया और हरि मुख निरखि - निरखि लोचन करने लगी |
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